हमारे बारे में
असम सहित पूरे पूर्वोत्तर में हिंदी के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से 3 नवंबर, 1938 को एक हिंदीसेवी संस्था के रूप में असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना हुई। असम के प्रथम मुख्यमंत्री भारतरत्न लोकप्रिय गोपीनाथ बरदलै जी इस संस्था के संस्थापक अध्यक्ष रहें। पूर्व में इस संस्था का नाम असम हिंदी प्रचार समिति था।
हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास जिन राष्ट्रीय नेताओं ने किया, उनमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम पूरे राष्ट्र में सम्मान के साथ लिया जाता है। महात्मा गांधी ने स्वाधीनता आंदोलन के दौरान स्वराज्य के साथ-साथ स्वभाषा के पवित्र संकल्प के साथ देश के हर प्रांत में हिंदीसेवी संस्था की स्थापना पर बल दिया था। असम सपूत गोपीनाथ बरदलै और उनके सहयोगियों ने मिलकर गुवाहाटी में इस संस्था की नींव रखी। इस समिति की स्थापना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रेरणा व उनके मार्गदर्शन में हुई। महात्मा गांधी ने पूरे भारत को एक सूत्र में बांधने के लिए, उसे संगठित करने के लिए देशभर में सर्वाधिक बोली और समझी जानेवाली हिंदी भाषा को संपर्क भाषा के रूप में अखिल भारतीय स्तर पर प्रयोग करने का आह्वान किया। हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकारते हुए उन्होंने कहा था – राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। उन्होंने राष्ट्रभाषा हिंदी को जनता की आवाज और अपनी इच्छाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिंदी को राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया। वे जहाँ भी जाते, जिस आंदोलन का नेतृत्व करते, वहाँ वे हिंदी के महत्व को स्पष्ट कर देते थे। उन्होंने अनेक नेताओं को संपूर्ण भारत में घूम-घूम कर हिंदी का प्रचार-प्रसार करने का आदेश दिया। गांधी जी के आदेश से वर्ष 1934 में जननेता व समाजसेवक बाबा राघवदास और काका साहेब कालेलकर असम आए और यहाँ के प्रबुद्ध लोगों के सहयोग से हिंदी प्रचार-प्रसार आरंभ किया।
इस समिति के माध्यम से लोकप्रिय गोपीनाथ बरदलै जैसे असम के शीर्ष नेताओं ने राष्ट्रभाषा हिंदी का प्रचार-प्रसार कर पूर्वोत्तर की जनता की भावनाओं को जागृत करने का भरसक प्रयास किया। इसके फलस्वरूप आज पूरे पूर्वोत्तर में हिंदी के प्रति यहाँ की जनता का अगाध प्रेम और स्नेह है।
असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति – एक परिचय
प्राक्कथन : पूज्य राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भविष्यदर्शी चिंतन एवं राष्ट्रीय अस्मिता को सुदृढ़ करने की परम इच्छा के अनुकूल राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी का स्थान महत्वपूर्ण रहा। गांधी जी तथा उनके सहयोगियों ने यह भलीभांति समझते थे कि स्वतंत्र भारत के लिए एक सर्वमान्य भाषा की जरूरत होगी और यह देवनागरी में लिखी हिंदी में सामर्थ्य है। इसलिए उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन के अपने 18 सूत्रीय कार्यक्रम में हिंदी के प्रचार को राष्ट्रीय कार्य के रूप में शामिल किया और सर्वप्रथम अपने सुपुत्र देवदास को प्रचारक बनाया।
सन् 1934 की बात है। महात्मा गांधी के अनुगामी उत्तर प्रदेश के जननायक व समाज-सेवक बाबा राघव दास जी ने बापू के आदेश पर असम प्रांत में हिंदी प्रचार की नींव डाली। फलस्वरूप गुवाहाटी, जोरहाट, शिवसागर और डिब्रुगढ़ में राष्ट्रभाषा हिंदी-प्रचार का काम शुरू हुआ। असम के कई युवक हिंदी की शिक्षा लेने हेतु काशी, इलाहाबाद और गोरखपुर गये। श्री बाबा राघवदास अपने आश्रम ‘बरहज’ से ही असम की प्रचार व्यवस्था चलाते रहे। उस समय असम में समिति की स्थापना नहीं हुई थी। धीरे-धीरे इसकी आवश्यकता महसूस की जाने लगी। आवश्यकता को मद्देनजर रखते हुए असम के प्रथम मुख्यमंत्री लोकप्रिय गोपीनाथ बरदलै जी के आग्रह से 3 नवंबर, 1938 को ‘असम हिंदी प्रचार समिति’ नामक एक संस्था की स्थापना की गयी। भारतरत्न लोकप्रिय गोपीनाथ बरदलैजी समिति के संस्थापक अध्यक्ष बने। आगे चलकर इस संस्था का नाम पड़ा ‘असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’। बरदलै जी ने राष्ट्रभाषा के प्रति असीम प्रेम और उदारता का परिचय देते हुए सरकार की ओर से असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति को आर्थिक सहायता दी। साथ ही सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों में राष्ट्रभाषा हिंदी सिखाने की अनुमति भी प्रदान की। इस प्रकार अविभाजित असम में हिंदी प्रचार का कार्य सुव्यवस्थित रूप से चलने लगा।
बापू के पद-चिह्नों के अनुगामी, प्रसिद्ध साहित्यकार श्री काका साहब कालेलकर जी का आशीर्वाद असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति को सहज ही प्राप्त हुआ। श्री काका साहब कालेलकर, बाबा राघवदास, मोटूरि सत्यनारायण, दादा धर्माधिकारी और श्री मन्नारायण अग्रवाल जी के असम भ्रमण से स्थानीय हिंदी प्रचार आंदोलन को काफी बल मिला। असम के विद्वानों व शिक्षा-प्रेमियों पर उनके व्यक्तित्वों का गहरा असर पड़ा। लोकप्रिय बरदलै जी हिंदी कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन देने लगे। चारों तरफ से उत्साह की लहरें उमड़ने लगीं।
जनवरी, 1948 की व्यवस्थापिका सभा ने यह तय किया कि बापू जी की विकेंद्रीकरण नीति के अनुसार असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति अपनी तरफ से प्रचार परीक्षाएं चलाएं। अक्तूबर, 1948 से समिति अपनी परीक्षा योजना के आधार पर काम करने लगी। शुरू में तो समिति तीन परीक्षाएं ही संचालित करती थीं – प्रथमा, प्रवेशिका और विशारद। सन् 1950 से प्रवेशिका और विशारद के बीच प्रबोध नामक और एक परीक्षा चालू हुई। फिर सन् 1959 से समिति की परीक्षाओं को तीन स्तर पर संचालित करने का निश्चय हुआ – प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च। प्राथमिक खंड में परिचय और प्रथमा, माध्यमिक खंड के अंतर्गत प्रवेशिका और प्रबोध एवं उच्च खंड में विशारद और प्रवीण की परीक्षाएं रखी गयीं। फिलहाल समिति की ओर से कुल छह परीक्षाएं आयोजित होती हैं – परिचय, प्रथमा, प्रवेशिका, प्रबोध, विशारद और प्रवीण। समिति की ये परीक्षाएं वर्ष में दो बार (फरवरी में परिचय से प्रवीण तक और जुलाई में परिचय से प्रबोध तक) हुआ करती थी, परंतु वर्ष 2023 से वर्ष में एक बार (जुलाई महीने में) आयोजित करने का निश्चय हुआ है।
असम सहित पूर्वोत्तर की सभी राज्यों में समिति अपने परीक्षा केंद्रों के जरिए राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार-प्रचार व पठन-पाठन की सुविधा मुहैया करा रही है। इसके अतिरिक्त समिति ने अपने प्रकाशनों से राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार में विशिष्ट गति लायी है। यह कार्य समिति के सभी विभागों और हमारे प्रचारक-प्रचारिकाओं तथा हिंदी-प्रेमियों के अथक परिश्रम से संपन्न हो रहा है। फिलहाल समिति के परीक्षा विभाग, साहित्य विभाग, वित्त विभाग, स्थापन विभाग, केंद्रीय ग्रंथागार, पुस्तक बिक्री विभाग, केंद्रीय पुस्तक भंडार, प्रचार विभाग, कंप्यूटर प्रशिक्षण विभाग अपने-अपने दायित्व का निष्ठापूर्वक अनुपालन करते आ रहे हैं।
परीक्षा विभाग
परीक्षा विभाग : परीक्षा विभाग असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति का एक महत्वपूर्ण विभाग है। यह राष्ट्रभाषा परीक्षाओं का संचालन तथा विद्यालयों की देखरेख करता है। समिति की छह परीक्षाओं में तीन परीक्षाएं (प्रबोध, विशारद और प्रवीण) भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा मान्यताप्राप्त हैं और शेष तीन परीक्षाएं (परिचय, प्रथमा और प्रवेशिका) प्रारंभिक हैं। समिति हिंदी की छह क्रमबद्ध परीक्षाएं चला रही है, जिसके परिणामस्वरूप हिंदी भाषा का शिक्षण व्यवस्थित रूप से हो रहा है। समिति की प्रवीण परीक्षा उत्तीर्ण स्नातकों को उपाधि-पत्र प्रदान करने के लिए समय-समय पर समावर्तन समारोह का आयोजन किया जाता है।
सन् 1948 से यानी समिति ने जब से परीक्षाएं शुरू कीं, तब से आज तक उसकी विभिन्न परीक्षाओं में लाखों परीक्षार्थी बैठ कर उत्तीर्ण हुए हैं। ये परीक्षार्थी सभी प्रकार के समाजों से संबद्ध हैं और विभिन्न स्तरों के लोक भी शामिल हैं। समिति के कुल 25 हजार पंजीकृत सहयोगी प्रचारक हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में हिंदी प्रचार को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। समिति की परीक्षाएं करीब 500 केंद्रों में चलायी जाती हैं।
दीक्षांत समारोह : समिति की प्रवीण परीक्षा उत्तीर्ण स्नातकों को समावर्तन समारोह में उपाधि-पत्र प्रदान किये जाते हैं। समारोह में भारत के प्रख्यात विद्वान व चिंतक अपने दीक्षांत भाषण से स्नातकों को प्रोत्साहित करते आये हैं। अब तक ऐसे 22 वाँ दीक्षांत समारोह मनाये जा चुके हैं। प्रथम दीक्षांत समारोह सन् 1953 में हुआ था और उसमें पंडित सुंदरलाल जी ने अपने दीक्षांत भाषण रखा था। दीक्षांत समारोह में दीक्षांत भाषण प्रदान करने वाले विद्वानों के नाम क्रमश: नीचे दिये जा रहे हैं :
- पंडित सुंदरलाल
- जैनेंद्र कुमार
- कालूलाल श्रीमाली
- बाबा बिनोवा भावे
- भक्तदर्शन
- काका साहेब कालेलकर
- शरत चंद्र गोस्वामी
- ब्रज कुमार नेहरू
- पार्वती कुमार गोस्वामी
- सुरेश चंद्र राजखोवा
- त्रैलोक्य नाथ गोस्वामी
- राष्ट्रपति फखरुद्दिन अली अहमद
- गंगा शरण सिंह
- न्यायाधीश तरुण चंद्र दास
- लोकनाथ मिश्र (राज्यपाल)
- विश्व नारायण शास्त्री
- लेफ्टिनेंट जनरल एस.के. सिन्हा (राज्यपाल)
- अन्नदा शरण भागवती
- कमलेश्वर बोरा
- प्रो. ध्रुवज्योति शइकीया
- प्रो. जगदीश मुखी (राज्यपाल)
- श्री गुलाब चंद कटारिया (राज्यपाल)
साहित्य विभाग
साहित्य विभाग असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति का एक मुख्य विभाग है। यह समिति की परीक्षाओं की पाठ्यपुस्तकों के प्रकाशन के अतिरिक्त राज्य की स्कूली हिंदी पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन का कार्य पिछले 1974 से निरंतर करता आ रहा है। पाठ्ïयपुस्तकों के अतिरिक्त कुछेक साहित्यिक ग्रंथों के अनुवाद व प्रकाशन भी किया गया है। इस प्रकार समिति द्वारा प्रकाशित पुस्तकों के शीर्षक लगभग 500 से अधिक हो चुके हैं। कुछ पुस्तकों के नाम निम्नवत् हैं।
हिसाब विभाग
समिति का वित्त विभाग खासकर वित्तीय आय-व्यय का हिसाब रखता है। इस विभाग द्वारा वार्षिक बजट का प्रारूप भी तैयार होता है। किसी भी प्रकार के देय बिल की जांच यह विभाग ही करता है।
नि:शुल्क हिंदी पाठ्यपुस्तक वितरण शैक्षिक वर्ष : 2024-2025
पुस्तक वितरण
यह विभाग समिति की परीक्षाओं के पाठ्यपुस्तकों के अलावा बिक्री हेतु प्रकाशित सभी पाठ्यपुस्तक का क्रय-विक्रय का कार्य करता है। साथ ही परीक्षाओं के आलेख पत्र तथा पाठ्यक्रम भी इस विभाग से प्राप्त होते हैं।
पुस्तक वितरण
यह विभाग समिति की परीक्षाओं के पाठ्यपुस्तकों के अलावा बिक्री हेतु प्रकाशित सभी पाठ्यपुस्तक का क्रय-विक्रय का कार्य करता है। साथ ही परीक्षाओं के आलेख पत्र तथा पाठ्यक्रम भी इस विभाग से प्राप्त होते हैं।
केंद्रीय पुस्तक भंडार
केंद्रीय पुस्तक भंडार समिति के सभी प्रकाशनों का भंडारण तथा वितरण करता है। यह प्रति वर्ष लगभग 20 लाख पुस्तकों के रखरखाव तथा आपूर्ति का अभिलेख रखता है। साथ ही पुस्तकों की छपाई हेतु आवश्यक कागजों का हिसाब यह विभाग रखता है।
स्थापन विभाग
स्थापन विभाग समिति का एक विशेष विभाग है। इस विभाग द्वारा समिति का पुनर्गठन, प्रचार, संगोष्ठियां, कर्मचारियों का सेवा-विवरण, आदेश, अधिसूचना, पत्राचार आदि अनेक कार्य किये जाते हैं।
केंद्रीय ग्रंथागार : समिति के कार्यालय-परिसर में केंद्रीय ग्रंथागार हैं। इस ग्रंथागार में करीब 20 हजार पुस्तकें मौजूद हैं। इसमें हिंदी सहित पूर्वोत्तर के साहित्य की अनेक विधाओं की पुस्तकें शामिल हैं।
हिंदी विद्यापीठ : समिति द्वारा संचालित तथा भारत सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त उपाधि परीक्षाओं के विद्यार्थियों को नियमित रूप में विद्यापीठ की स्थापना की गयी थी। इस विद्यापीठ के जरिए हिंदी की नि:शुल्क कक्षाएं चलायी जाती हैं। इसके अतिरिक्त समिति द्वारा स्वीकृत सभी हिंदी विद्यालयों में भी हिंदी की नि:शुल्क शिक्षा दी जा रही है।